A Literary Reading of Yahudi Ki Ladki – Aagha Hashra’s Play

इस literary blog में हम author और नाटककार ‘आग़ा हश्र कश्मीरी’ (Aagha Hashra Kashmiri) और उनके नाटक “यहूदी की लड़की’ (Yahudi ki Ladki) पर बात करेंगे, जिन्हें लोग हिंदुस्तानी थिएटर का Shakespeare भी कहते हैं।

20वीं सदी की शुरुआत में, जब भारत में उर्दू theatre अभी अपने शुरुआती दौर में था, उस समय कुछ अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे पारसी, Europe से theatre का exposure लेकर लौटे, तो उन्होंने यहां भी theatre कंपनियाँ शुरू कीं।

1879 में बनारस में जन्मे, “आग़ा हश्र कश्मीरी” फारसी, उर्दू, हिंदी और संस्कृत चारों भाषाओं में नाटक लिखकर रंगमंच को एक नई ज़ुबान दी। सिर्फ़ 17 साल की उम्र में उन्होंने Play लिखना शुरू कर दिया था और वो पहले मुस्लिम नाटककार थे जिन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने थिएटर में उनके योगदान के लिए Gold Medal से नवाज़ा।

आगा को शायरी से बेहद लगाव था, अपने नाटकों में वो काव्य और मुहावरो के साथ छोटे गीतों और संवादों को ज़बरदस्त तरीक़े से पेश करते थे। और यही वजह थी कि उनके ज़्यादातर नाटकों के Dialogues में शेर-ओ-शायरी का खास तड़का होता था, जो दर्शकों को तालियाँ बजाने पर मजबूर कर देता था।

टुकड़े मेरे उड़ जाए, यह डरकर ना झुकेगा।
आगे किसी इंसान के यह सर ना झुकेगा।
– आग़ा हश्र कश्मीरी

यहूदी की लड़की, 1913 में प्रकाशित हुआ और बहुत Popular हुआ, और आने वाले वर्षों में यह नाटक पारसी-उर्दू theature में एक Classic बन गया। यह एक love – triangle कहानी है, जिसमें प्यार है, धोखा है, धार्मिक तनाव है, क्रूरता है, लेकिन क्षमा और इंसानियत भी है।

कहानी के अनुसार रोमनों द्वारा यहूदियों पर हो रहे अत्याचारों के बीच एक Roman राजकुमार को एक Jewish लड़की से प्यार हो जाता है। कई उतार-चढ़ावों के बीच कहानी आगे बढ़ती है और आखिर में पता चलता है कि वह Jewish लड़की असल में Roman है। दंगों के दौरान एक यहूदी ने उसे आग से बचाकर पाला-पोसा था। दूसरी तरफ उसी यहूदी की असली बच्ची को रोमनों ने एक छोटी-सी गलती की वजह से आग में फेंककर मार दिया था।

यह play religious fanaticism और power के ego को बहुत ज़बरदस्त तरीके से दिखाता है, जैसा कि हमने Schindler’s list (1993), Bombay (1995), Pinjar (2003), Black Friday (2004) और Mulk (2018) जैसी फ़िल्मों मे भी देखा।

कहानी हमें एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा करती है जहां इंसाफ़ का तराज़ू कई बार लड़खड़ाता है, एक ओर centuries-old belief systems है तो दूसरी ओर इंसानी जज़्बात जो किसी भी मजहब से ऊपर है।

Play किसी धर्म को गलत नहीं कहता, वो बस ये सवाल पूछता है कि अगर हमारे धर्मिक रिवाज़ दूसरों के दुःख और दर्द का कारण बन जाए, तो क्या हम सही मायनो में इंसान रह पाते हैं? यही empathy और sacrifice की vibe इसे आज भी super relevant बनाती है।

‘‘मेरे नाटक देखकर लोग रोते-धोते हुये नहीं, बल्कि मुस्कराते हुये एक संदेश लेकर जायें।’’
– आग़ा हश्र कश्मीरी


आख़िर वो क्या बातें हैं जो इस novel को एक undying literary phenomenon बनाती हैं?

  • क्या मोहब्बत, तख्त और ताज से बड़ी हो सकती है?
  • क्या होता है जब identity और ego का टकराव होता है?
  • क्या चुनेंगे, धर्म के नाम पर नफ़रत, या इंसानियत के नाम पर रहम?

इसे जानने और महसूस करने के लिए पढ़िए हमारा Premium Literary Blog जो एक evocative नज़र डालता है author की ज़िंदगी पर, novel की emotional soul पर, और कैसे यह timeless literary gem बन गयी Indian cinema की सबसे powerful फ़िल्मों में से एक।


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हमें उमीद है कि आपने यह किताब पढ़ी होगी, तो comment box में share करे वो क्या बातें है जो आपकी नज़र में इस novel को iconic बनाती है।

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1 Response

  1. Amit Garg says:

    Very nice blog

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