A Literary Reading of Chitralekha – Bhagwati Charan Verma’s Book

इस literary blog में हम आधुनिक काल के बेहद सफल author भगवती चरण वर्मा (Bhagwati Charan Verma) और उनकी iconic novel चित्रलेखा (Chitralekha) पर बात करेंगे, जिसे human psychology और life philosophies के लिए काफ़ी सराहा गया, और कई बार films के लिए भी adapt किया गया।

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के साफीपुर में 30 अगस्त 1903 को जन्मे, भगवतीचरण वर्मा, एक ऐसे लेखक जिन्होंने साहित्य को नई दिशा दी । पाठकों को human psychology को समझने का हुनर सिखाया।

“प्रेम भक्ति नहीं है इसीलिए एक ओर से नहीं होता,
प्रेम संबंध है, वह दोनो ओर से होता है।“
– भगवतीचरण वर्मा

साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण पुरस्कार, और 1978 में राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया।

उनकी writing journey इतनी wide थी कि उसमें poetry, short stories, essays, narratives, commentaries, novels और film scripts लिखना भी उसमें शामिल था। उन्होंने अपने time में ऐसे topics पर लिखा जिन पर उस वक़्त कलम चलाना बहुत बड़ा daring step माना जाता था।

उनका लिखा novel, चित्रलेखा, सिर्फ़ एक landmark novel या शानदार literary creation ही नहीं है, बल्कि human psychology और life philosophies की एक full-on roller coaster ride भी है।

चित्रलेखा की कहानी पाप और पुण्य की अवधारणा पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, पाप-पुण्य को समझने के लिए अलग-अलग गुरु (बीजगुप्त और कुमारगिरी) के पास जाते हैं और नर्तकी चित्रलेखा के जीवन के माध्यम से वे प्रेम, वासना और त्याग के अलग-अलग अनुभवों से गुजरते हैं। आख़िर में महाप्रभु रत्नाम्बर कहते है: ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’’

1934 में published इस novel में मौर्य काल के भारत की ज़िंदगी को बिल्कुल real दिखाया है, जहाँ हर character, चाहे वो चित्रलेखा हो, बीजगुप्त हो या कुमारगिरि, इतने real लगते हैं कि लगता है जैसे आप उस समय के पाटलिपुत्र को खुद जी रहे हो।

यह novel Romance, Human nature, Societal hypocrisy, और Moral dilemmas को भी explore करते हुए दिखाता है कि desires इंसान को कमजोर भी बनाती हैं और ज़िंदा भी रखती हैं।

चित्रलेखा का सबसे बड़ा सवाल है कि इंसान अपनी moral values को follow करे या फिर personal desires को।

हर इंसान सुख चाहता है, बस तरीका अलग होता है। कुछ लोग पैसा और संपत्ति में सुख ढूंढते हैं, कुछ शराब या आनंद में, कुछ व्यवहार और रिश्तों में, और कुछ त्याग और तपस्या में। लेकिन असल बात ये है कि हर कोई किसी न किसी रूप में अपनी सुख की तलाश में रहता है।

यही human psychology की complexities हमें Pakeezah (1972), Umrao Jaan), Utsav (1984), Maya Memsaab (1993), Johnny Gaddar (2007), और Gehraiyaan (2022) जैसी फिल्मों में भी दिखती हैं।

“संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते है और न पुण्य करते है, हम केवल वह करते है जो हमें करना पड़ता है।“
– भगवती चरण वर्मा


आख़िर वो क्या बातें हैं जो इस novel को एक undying literary phenomenon बनाती हैं?

  • पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है?
  • क्या वासना को अलग रखकर प्रेम हो सकता है?
  • क्या होता है जब personal desires और moral values टकराते है?
  • क्या किसी सभ्यता की शालीनता, नर्तकियों को दिए गए सम्मान से आँकी जा सकती है?

इसे जानने और महसूस करने के लिए पढ़िए हमारा Premium Literary Blog जो एक evocative नज़र डालता है author की ज़िंदगी पर, novel की emotional soul पर, और कैसे यह timeless literary gem बन गयी Indian cinema की सबसे powerful फ़िल्मों में से एक।


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हमें उमीद है कि आपने यह किताब पढ़ी होगी, तो comment box में share करे वो क्या बातें है जो आपकी नज़र में इस novel को iconic बनाती है।

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